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झूठा प्‍यार

उस अंधेरी कोठरी में अब उस काम वाली बाई के अलावा कोई कभी कभार ही आता था। कृष्‍णनारायण अकेला ही उस कोठरी में रहता था। वो बूढा हो चुका था। उसके हाथ पैर बिना उसकी मर्जी के भी कॉपते रहते थे। उसका खुद से नियन्‍त्रण हट चुका था। जब मनुष्‍य बूढा हो जाता है तब उसे ऐसी परिस्थितयों का सामना करना ही पडता है। लेकिन कृष्‍णनारायण वक्‍त से पहले ही बूढा हो चुका था। जिसका कारण था तन्‍हाई। न तो उसका कोई रिश्‍तेदार था और न कोई अपना दोस्‍त।
उस दिन कृष्‍णनारायण उठा नही था। रोज की तरह कामवाली बाई उसका खाना और दवा उसके पास रख के चली गई। बूढा कृष्‍णनारायण पिछले कुछ महीनों सें उसकी पगार भी न दे सका क्‍योंकि उसके खुद खानें के बॉदे थे। लेकिन नौकरानी यह सोच कर काम कर रही थी कि कभी उसके बुरे वक्‍त में कृष्‍णनारायण नें उसकी बहुत मदद की थी और वो बिना पगार के भी कृष्‍णनारायण का काम कर उसका एहसान चुकाना चाहती थी। कृष्‍ण नारायण की उस कोठरी में टंगी टिक टिक करती घडी ही उसकी साथी हुआ करती है । कृष्‍णनाराण तन्‍हाई में उस घडी की सुईयों की आवाज सुनकर उसमें कुछ सुनना चाहते थे। शायद संगीत । वो ही संगीत जो कॉलेज के जमानें में वो अपनी गिटार पर बजाया करते थे। वो धुन जिसके लिये पूरे कॉलेज में उन्‍हे जाना जाता था। लडकियॉ कृष्‍णनारायण के इर्द गिर्द घूमा करती थीं। और कृष्‍णनारायण जवानी को उन दिनों को खुल कर जीना चाहते थे। कृष्‍ण नारायण के दोस्‍त उनको कृष्‍णा के नाम से जानते थे। कृष्‍णा अपने कॉलेज का सबसे पॉपूलर लडका था। कारण था उसकी गिटार से निकली वो धुन जिसे उसनें खुद कम्‍पोज किया था। उसकी वो धुन कॉलेज की लडकियों को ठीक ऐसे ही अपनी तरफ खीचती थी जैसे मथुरा के कृष्‍णा की बॉसुरी की धुन गोपियों को अपनी तरफ खींचती थीं। कृष्‍णा खुश मिजाजी और और खुलकर जीनें वाला लडका था। उसका अफेयर कॉलेज की कई लडकियों के साथ चल रहा था। प्‍यार व्‍यार उसके लिये कुछ भी मायनें नही रखता था। जिसके चलते वो अक्‍सर विवादों में रहता था। ऐसा नही था कि कृष्‍णा बडे बाप का लडका था। लेकिन फिर भी किसी बात की कमी नहीं थी उसके पास। कॉलेज के दिनों में मस्‍ती करते करते कब पढाई पूरी हो गयी कृष्‍णा को पता ही नही चला। सभी दोस्‍त एक एक करके बिछड गये। कृष्‍णा भी दिल्‍ली छोडकर मुम्‍बई आ गया। उसकी पढाई तो उसके काम नही आयी लेकिन हॉ उसके हुनर ने उसका साथ जरूर दिया और उसे एक म्‍यूजिक कम्‍पनी में काम मिल गया। म्‍यूजिक कम्‍पनी का मालिक बडा ही सख्‍त मिजाज था। लेकिन कृष्‍णा को क्‍या उसे अपने काम से मतलब था। उस म्‍यूजिक कम्‍पनी में ही एक कस्‍टयूम डिजाइनर काम करती थी। कंगना नाम था उसका । कहनें को तो वो कस्‍टयूम डिजायनर थी लेकिन खुद एक दम साधारण सी दिखनें वाली लडकी। लेकिन फिर भी बहुत सुन्‍दर थी। बिल्‍कुल यश चोपडा की किसी रोमान्टिक फिल्‍म की हीरोइन की तरह। कृष्‍णा ने उसे देखा और फिर देखते ही रह गया। कृष्‍णा उस पर मोहित हो गया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि कृष्‍णा उससे प्‍यार करनें लगा था। कृष्‍णा तो उसे पाकर फिर इस्‍तेमाल करके छोडना चाहता था। कॉलेज की लडकियों के साथ्‍ा भी तो वो ऐसा ही करता था। उसनें अपना प्रेमजाल कंगना के इर्द गिर्द बुनना शुरू कर दिया। उसनें उस जगह अपना रूम लिया जो कंगना के रूम के सामनें ही पडता था। कंगना के पास एक छोटी सी कार थी। वो रोज उस से ही कम्‍पनी जाती थी। कृष्‍णा उसी के साथ काम करता था इसलिये वो भी कंगना के साथ्‍ा ही कम्‍पनी जाने लगा। ये रूटीन बन गया था दोनों का। दोनों साथ साथ ऑफिस जानें लगे। कभी कृष्‍णा गाडी ड्राइव करता कभी कंगना धीरे धीर उनकी नजदीकिया बढनें लगी। दोनों ऑफिस साथ साथ जाते थे फिर खाना भी साथ साथ खाने लगे। और फिर साथ साथ जीने मरनें की कसमें भी खाने लगे। कृष्‍णा अपनी गिटार की वो ही धुन बजाता जो कॉलेज में बजाता था और कंगना उस को ध्‍यान से सुनती। और एक दिन दोनों ने प्‍यार की सारी हदें पार कर दीं । लेकिन कृष्‍णा उस दिन के बाद कंगना से दूर दूर रहने लगा। क्‍योंकि उसका दिल अब कंगना में नही लगता था। कंगना उसके लिये पुरानी लगने लगती थी। कृष्‍णा अपने मकसद में कामयाब हो चुका था। वो तो कंगना के साथ प्‍यार व्‍यार का नाटक करता रहा। ठीक वैसे ही जैसे वो कॉलेज में और लडकियों के साथ करता था। कंगना कृष्‍णा को फोन करती तो वो रिसीव नही करता। और एक दिन कृष्‍णा ने अपना कमरा भी बदल लिया। कंगना बहुत रोई। और वो कृष्‍णा के ऑफिस में गई और उससे इस बेरूखी का कारण पूछा तो कृष्‍णा ने साफ साफ कह दिया कि वो तो उसके साथ प्‍यार का नाटक करता रहा था। वो तो उससे प्‍यार करता ही नहीं। यह बात सुनकर कंगना के पैरो तले जमीन खिसक गयी। वो घर आई और पूरे दिन रोती रही। फिर दूसरे दिन उसनें ऑफिस जाकर इस्‍तीफा दे दिया। और अपना सामान पैक कर कहीं दूर चली गई। कृष्‍णा को यह बात पता थी लेकिन उसनें उसे रोकनें के कोशिश नही की। कृष्‍णा जब घर आया तो उसनें लैटर बॉक्‍स चैक किया। उसमें एक लैटर था। कंगना का लैटर । कृष्‍णा उस लैटर को लेकर अन्‍दर घुसा और लैटर को एक तरफ फैक कर टीबी देखने लगा । उसने उस लैटर को पढनें की जरूरत नही समझी। टीबी देखते देखते रात के 10 बज चुके थे। कृष्‍णा की ऑखों में नींद थी। उसनें टीबी बन्‍द की तो उसकी नजर एक बार फिर कंगना के लैटर पर पडी। इस बार उसनें लैटर को उठा कर पढना चाहा और जब उसनें पढना शुरू किया तो पढता ही रह गया। फिर खामोश हो गया। उसनें लैटर को तह किया और अपनी बैड के पास वाली टेबल के दराज में रख दिया। और सोनें की कोशिश करनें लगा। लेकिन नींद अब उसकी ऑखों से वापस जा चुकी थी। वो कभी उस खत के बारे में सोचता कभी कंगना के। दूसरे दिन वो ऑफिस नही गया। और फिर यह सिलसिला चलता ही रहा। कृष्‍णा ने भी ऑफिस से इस्‍तीफा दे दिया। और वापस दिल्‍ली आ गया। कंगना का वो खत उसे जीने नही दे रहा था। उसने दिल्‍ली में एक चाल में एक छोटी सी कोठरी ले ली। म्‍यूजिक कम्‍पनी में रह कर जो भी पैसे कमायें उनसें वो अपना खर्च चला रहा था। उसका दिल कोई भी काम करनें का नही करता था। धीरे धीरे कृष्‍णा की आर्थिक स्थिति कमजारे होने लगी। वो वक्‍त से पहले बूढा होने लगा। उसे चिंता ने घेर लिया। कृष्‍णा सब कुछ भूलना चाह रहा था लेकिन वो लैटर उसे कुछ भी भूलनें नहीं दे रहा था। कृष्‍णा वक्‍त के साथ साथ अपना नाम पता सब भूल गया उसे याद थी तो कंगना और उसका वो लैटर। धीरे धीरे कृष्‍णा बीमारी से घिरनें लगा। उसनें एक नौकरानी रख ली और उसको एडवांस के तौर पर कुछ रूपये दे दिये। जिसकी नौकरानी को सख्‍त जरूरत थी। वो रोज आती और उनका खाना और दवा कृष्‍णनारायण के पास रख जाती। ये सब आज तक ऐसा ही चल रहा है। ये सारी बातें याद कर कृष्‍ण नारायण की ऑखों में ऑसू आ गये। उन्‍होनें पास रखा वो लैटर एक बार फिर पढा और गहरी सॉस ली। अन्तिम सॉस। कृष्‍णनाराण मरना नही चाहते थ्‍ो लेकिन मजबूरी थी। कमला बाई जब शाम को फिर कोठरी में आई तो कृष्‍णनारायण परलोक सिधार चुके थे। पास एक लैटर पडा था जो अक्‍सर वहीं रखा रहता था। कमला बाई ने लैटर खोला और पढा। वैसे कमलाबाई ज्‍यादा पढी तो नही थी लेकिन टूटी फूटी हिन्‍दी उसे आती थी उसने उस लैटर को पढा उसमें जो लिखा था वो पढकर कमलाबाई सहम गयी। उसमें लिखा था-

कृष्‍णा,
    मैं तुमसे प्‍यार करती हू। और मैं यह शुरू से ही जानती थी कि तुम मुझे धोखा दे रहे हो लेकिन फिर भी मैंने तुम्‍हे यह महसूस नही होने दिया। तुम जानते हो मैं तुम्‍हे कॉलेज के समय से ही तुम्‍हे प्‍यार करती थी। तुम्‍हारी क्‍लासमेट थी। लेकिन तुमने कभी मुझ पर ध्‍यान नही दिया देते कैसे कॉलेज की बाकी लडकियॉ जो तुम्‍हे घेरे रहती थीं । लेकिन मैं तुमसे बहुत प्‍यार करती थी और मैंने एक फैसला लिया था कि अगर मेरी जिन्‍दगी में कोई लडका आयेगा वो तुम्‍ही होगे। लेकिन कॉलेज में यह सब सम्‍भव नही हो सका। और मैंने यह म्‍यूजिक कम्‍पनी ज्‍वाइन करली। लेकिन किस्‍मत ने मुझे तुमसे फिर मिलाया तुम्‍ानें भी वो ही म्‍यूजिक कम्‍पनी ज्‍वाइन करली। और फिर मुझसे दोस्‍ती करनें के बहानें पहले मेंरे घर के करीब आये और फिर दिल के करीब आये। मैं तो तुमसे हमेशा से ही प्‍यार करती थी। और कुछ पल के लिये मुझे प्‍यार किया तो मुझे मानों दुनिया ही मिल गई। मै जानती थी कि तुम्‍हारा ये प्‍यार झूठा है लेकिन फिर भी मुझे बहुत खुशी हुई। कुछ समय के लिये मैं तो भूल ही गई थी कि तुम कॉलेज के सबसे बडे धोखेबाज लडके हो। तुम मुझसे झूठा प्‍यार करते हो। लेकिन मैं तुमसे सच्‍चा प्‍यार करती हू और करती रहूगीं। मेरे उपर कुछ जिम्‍मेदारियॉ हैं इसलिये मर तो नही सकती लेकिन तुमसे दूर जरूर जा रही हू ताकि तुमको मुझसे कोई परेशानी न हो । ..................... तुम्‍हारी कंगना

यह लैटर पढ कर कमलाबाई नें वहीं रख दिया और मौहल्‍ले वालों को कृष्‍णनारायण की मौत की खबर दी। कोठरी में लोग को भीड जुटने लगी। और पास रखा वो लैटर हल्‍की हल्‍की हवा से हिल रहा था। कृष्‍णनारायण खामोश अपने बिस्‍तर पर लेटे हुये थे। लेकिन घडी अभी भी टिक टिक कर रही थी। और बयॉ कर रही थी कहानी झूठे प्‍यार की जो कब सच्‍चे प्‍यार में बदल गया पता ही नही चला।